शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

भविष्य के बच्चे !


विविध रूप रंग के
परिधानों से सजे हुए 
कंधे पर बस्ते के बोझ से
दबे हुए,
पकडे हुए उंगलिया माँ की, बाप की 
हर कालोनी  के द्वार  पर
खड़े हैं बच्चे,
क्योंकि आज से स्कूल खुल गए हैं !
वे लिखने जा रहे हैं
नया अध्याय जीवन का ,
हल करेंगे जमा घटा के कुछ सवाल 
ईंट रखेंगे नई
अपने भविष्य की इमारत की.
शब्द गढ़ेंगे नए
नयी और कोरी तख्ती की इबारत में !
संस्कारों की शाला से सीखेंगे नए पाठ ,
रटेंगे पहाड़े फिर चार दूनी आठ, 
ज्ञान वर्षों से इसी तरह आगे बढ़ा है,  
पुरानी पौध की जगह लेकर
नयी पौध ने उपवन को
फूलों से भरा है !
इसलिए जा रहे हैं बच्चे
बनने भविष्य
हमारा,समाज का,देश का !

1 टिप्पणी:

  1. विद्यालय जाते हुए बच्चे
    क्या सोचते हैं,
    बस्ते को लादे हुए,
    बचपन को बंधन में डालते हैं,
    हम बच्चो के सहारे
    अपने सपने पालते हैं !

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